दर्द की चादर ओढ़े जी रहे हैं हम ।
दूसरों को क्या बताना
खुद के आंसू खुद ही से छुपा रहे हैं हम ।
हमारे अंदर दर्द है कितना
हम खुद भी ना जाने ।
दुनिया के सामने जो हम खील खिलाकर हंसे
उससे बड़ी मुस्कुराहट से हम खुद को भी बेहलाए ।
छलिया है हमारी जिंदगी
खुद को भी धोखा दे रहे हैं हम ।
आंखें भले ही नम ना हो
पर दिल के अंदर जो सैलाब है
उसे शांत करने में लगे हैं हम ।
दर्द की चादर ओढ़े जी रहे हैं हम ।
रात की खामोशी में,
दिल की आवाज को भी शांत करके
सो रहे हैं हम ।

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